Poetry /सब भुलाकर सान से रहता
सब भुलकर सान से रहते है,
याद कड़वी होती बहुत इसलिए
अपनों में अंजान से रहते हैं।
दिल तो अब बस रोटी के सपने देखता,
अपनी किस्मत तो अब बेजान सा रहता।
कभी हम भी किसी के ख्वाब हुआ करते थे,
अब दर्द दिल में दबाकर
हर साम गुमनाम सा रहता।
दौलत होती तो होता हमरा भी कोई अपना,
हम गरीबों की झोपड़ी में कौन भला प्यार से रहता।
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