Kavita: दूसरों की देखा देखी
दूसरों की देखा देखी करते-करते,
कर्ज में क्यों डूबता हो, यह दुनिया है
यहां कौन किसी का होता है ?
तुम कर्ज को लेकर शादी में
पूड़ी पकवान खिलाकर,
जो निंदा करने वाले हैं
जो कमी गिनाने वाले हैं?
क्या उनको चुप कर पाओगे?
क्यों पड़े समाज के चक्कर मे
अपने अंदर को झांको तुम
अपनी शक्ति के अंदर ही,
हर कार्य करो विस्तार करो
ना नकल करो गैरो का ,
वरना एक दिन तुम रोओगे
भरते -भरते ही कर्ज तुम
ईस धरा रिस्ता तोड़ोगे।
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