69000 Shikshak Bharti: इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश से69000 शिक्षक भर्ती में,नई मेरिट
हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ द्वारा दिए गए एक महत्वपूर्ण फैसले ने 2019 में हुई 69,000 सहायक अध्यापक भर्ती प्रक्रिया को लेकर नए सवाल खड़े कर दिए हैं। इस आदेश के अनुसार, 1 जून 2020 और 5 जनवरी 2022 को जारी की गई चयन सूचियों को खारिज करते हुए, तीन महीने के भीतर एक नई चयन सूची जारी करने का निर्देश दिया गया है। कोर्ट ने आरक्षण नीति के अनुपालन में हुई कथित गड़बड़ियों को देखते हुए यह निर्णय लिया है, जिससे राज्य सरकार को बड़ा झटका लगा है और इस भर्ती प्रक्रिया के तहत कार्यरत शिक्षकों की नौकरियों पर भी संकट मंडरा रहा है।
कोर्ट का फैसला क्यों पड़ा भारी?
न्यायमूर्ति ए. आर. मसूदी और न्यायमूर्ति बृजराज सिंह की खंडपीठ ने इस मामले में सुनवाई करते हुए पाया कि 69,000 सहायक अध्यापक भर्ती में आरक्षण नीति का सही तरीके से पालन नहीं किया गया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी की मेरिट सामान्य श्रेणी के बराबर होती है, तो उसे सामान्य श्रेणी में रखा जाना चाहिए। इस फैसले के अनुसार, राज्य सरकार को 1981 के नियम और 1994 के आरक्षण अधिनियम के तहत एक नई चयन सूची तैयार करनी होगी।
6800 अभ्यर्थियों की सूची रद्द: क्या है प्रभाव?
पिछले साल 13 मार्च को दिए गए आदेश में, हाईकोर्ट ने 6800 अभ्यर्थियों की सूची को रद्द कर दिया था, जिसमें यह पाया गया था कि इन अभ्यर्थियों की चयन प्रक्रिया में आरक्षण नियमों का सही से पालन नहीं हुआ था। इसके बाद राज्य सरकार ने 5 जनवरी 2022 को एक नई चयन सूची जारी की थी, जिसे भी कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इसे बिना किसी विज्ञापन के जारी किया गया था। इस विवाद को लेकर अभ्यर्थियों ने अलग-अलग याचिकाएं दाखिल की थीं, जिनमें से कुछ में चयन सूची को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि आरक्षित श्रेणी के उन अभ्यर्थियों को भी आरक्षित श्रेणी में ही जगह दी गई है जिन्होंने अनारक्षित वर्ग के लिए तय कट ऑफ मार्क्स प्राप्त किए थे।
सरकार के लिए आगे की राह:
इस फैसले से सरकार को भर्ती प्रक्रिया में पुनर्विचार करना होगा और आरक्षण नीति के तहत नई चयन सूची जारी करनी होगी। यह प्रक्रिया तीन महीने के भीतर पूरी करनी होगी, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि आरक्षण नीति का पालन सही तरीके से हो रहा है। इस फैसले से उन अभ्यर्थियों को भी राहत मिल सकती है जिन्होंने आरक्षण विसंगति के चलते अपनी जगह खो दी थी।
हालांकि, इस फैसले के बाद यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार और अन्य संबंधित प्राधिकरण किस तरह से इस मामले का समाधान निकालते हैं, ताकि इस भर्ती प्रक्रिया में सम्मिलित शिक्षकों और विद्यार्थियों के हितों की रक्षा की जा सके। कोर्ट ने भी यह स्पष्ट किया है कि अगर कोई कार्यरत अभ्यर्थी इस नई चयन सूची के कारण प्रभावित होता है, तो राज्य सरकार उसे सत्रांत का लाभ प्रदान करेगी, ताकि इसका खामियाजा विद्यार्थियों को न भुगतना पड़े।
निष्कर्ष:
यह फैसला न केवल राज्य सरकार के लिए एक चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा करता है, बल्कि उन हजारों शिक्षकों के भविष्य पर भी सवाल खड़ा करता है जो इस भर्ती प्रक्रिया के तहत नियुक्त हुए थे। अब यह देखना होगा कि सरकार इस दिशा में क्या कदम उठाती है और कैसे इस स्थिति का हल निकालती है, ताकि शिक्षकों और विद्यार्थियों के हितों की रक्षा की जा सके।
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