Roti Ki Chahat:रोटी की चाहत मे दर -दर भटकता
रोटी की चाहत में दर -दर भटकता,
करता क्या जब पेट नहीं भरता।
मानव की किस्मत किस्सा निराला,
किसी का कमाकर पेट नहीं भरता,
कोई बिन कमाए ही सेठ कहलाता।
यहां दर्द गम को छिपाकर के कितने,
रोटी की चाहत में दर-दर भटकते।
कोई रेहड़ियों में जवानी खपाता,
करके मजदूरी हड्डियो को गलाता।
पेट की खातिर मानव है लड़ता
रोटी की चाहत कहां खत्म होता।
Nice
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