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Hindi New Kavita: हर सुबह रोटी के लिए दौड़ पड़ती है जिंदगी,रोटी की कीमत

Hindi New Kavita: हर सुबह रोटी के लिए दौड़ पड़ती है जिंदगी,रोटी की कीमत हर सुबह रोटी के लिए दौड़ पड़ती है जिंदगी  पर हर  शाम मायुस होकर  लौटी है ज़िंदगी,  रोटी के लिए इंसा दर-दर रहा भटक,  रोटी के आस में सांसे गई अटक, रोटी ने हमें दर-दर है घुमाया, रोटी नहीं कमाया तो नालायक हो गया, था मां लाडला अब पराया हो गया। रोटी के लिए पैसा ही महान हो गया, इस पैसे की पीछे इंसान गुलाम हो गया। दोस्तों मैं विनोद कुमार आपसे निवेदन करता हूं कि आप मुझे कुछ आर्थिक मदद देकर, एक स्वतंत्र बराबर के रूप में हमारे हाथों को मजबूत करें। हम जैसे ब्लॉगर गरीब घर में पैदा होकर आर्थिक रूप से कमजोर होकर मजदूरी करने पर मजबूर हो जाते हैं हम आपसे निवेदन करते हैं कि आप हमें कुछ आर्थिक सहयोग  करें, नीचे मैं अपना अकाउंट नंबर दे रहा हूं। Account Number -003320391150471

26 जनवरी पर भोजपुरी गीत:जिसे सुनते ही लोग बजाते हैं तालियां

26 जनवरी पर भोजपुरी गीत:जिसे सुनते ही लोग बजाते हैं तालियां भारत के अजब करानी,बिरवन   के जवानी के मौका मिलिह त सुन लिह केहू के जुबानी से-२ चंद्रशेखर सुभाष भगत की अजबे यार कहानी बा प्रेम अहिंसा   गांधी नेहरू जहां प्रीत निशानी बा। प्रेम की भाषा प्रेम की वाणी प्रेम कहानी से मौका मिलिह ह त सुन ली है कहू के जुबानी से-२ दोस्तों यह गीत आपके भाई विनोद कुमार द्वारा लिखा और गया गया है हम आशा करते हैं आपको पसंद आएगा पसंद आए तो हमारे ब्लॉग को लाइक शेयर और हमारी यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब जरूर करें

Nya Saal Par Dinkar Ki Kavita

Nya Saal Par Dinakar ki Kavita: नए साल पर महाकवि दिनकर की कविता नए साल पर महाकवि दिनकर द्वारा लिखी कविता जो सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रही है महाकवि ने अंग्रेजों के बनाए नए साल को अस्वीकार  कर दिया था, और अपने नए साल को स्वीकारा था उनके नजर में अंग्रेजों का नया कैलेंडर नया साल हमारे भारतीय मौसम के अनुसार नहीं आता हमारा नए साल आने का प्रतीक नया होता है। इसलिए हम लोग देखते हैं महाकवि दिनकर के द्वारा लिखित कविता अपना यह त्यौहार नहीं है।

sahitya akademi award 2024:अकादमी पुरस्कार , हिंदी के लिए गगन गिल सम्मानित

sahitya akademi award 2024:साहित्य अकादमी पुरस्कार ,हिंदी के लिए गगन गिल सम्मानित हिंदी भाषा के लिए इस साल का साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रसिद्ध कवयित्री गगन गिल को उनकी कविता-संग्रह “मैं जब तक आई बाहर” के लिए दिया गया है। यह कृति महिलाओं के संघर्ष, आत्म-साक्षात्कार और जीवन की गहराई को दर्शाती है। sahitya akademi award 2024 साहित्य अकादमी पुरस्कार 2024 के विजेता: विधाओं और भाषाओं के अनुसार सूची 1. कविता-संग्रह के विजेता भाषा- असमिया 👉  लेखक का नाम- समीर तांती गुजराती- दिलीप झावेरी हिंदी -गगन  गिल मलयालम- के. जयकुमार मणिपुरी -हाओबम सत्यवती देवी पंजाबी- पॉल कौर राजस्थानी- मुकुट मणिराज संस्कृत -दीपक  कुमार शर्मा 2. उपन्यास के विजेता भाषा लेखक का नाम बोडो अरन राजा अंग्रेजी ईस्टरिन किरे कश्मीरी सोहन कौल 3. कहानी-संग्रह के विजेता भाषा लेखक का नाम नेपाली युवा बराल सिंधी हूंदराज बलवाणी 4. निबंध के विजेता भाषा लेखक का नाम कोंकणी मुकेश थली मैथिली महेंद्र मलंगिया ओड़िया वैष्णव चरण सामल 5. साहित्यिक आलोचना के विजेता भाषा लेखक का नाम कन्नड़ के.वी. नारायण मराठी सुधीर रसाल तेलुगु पेनुगों...

जब हो जेब में पैसा,बेरोजगारी की दर्द,विनोद कुमार,की कविता

जब हो जेब में पैसा,बेरोजगारी की दर्द,विनोद कुमार,की कविता    जब हो जेब में पैसे तो दोस्त की फोन आती है, ना हो  जब  जेब में पैसे कोई ना याद करता है। घरों मे मां-बाप भी  पैसों के आगे  ,प्रेम करते है, ना हो जब जेब में पैसे तो घर से दूर करते हैं। कभी गाली कभी झगड़ा यही प्रतिदिन का किस्सा है,घरों में पैसे लाकर देने वालों पर अब तो प्रेम बिकता है। सुबह से शाम तक निकले गलियां गलियां घूमे हम पर इस बेरोजगारी में कहीं ना काम मिल पाया, मां को ऐसा लगता था की हम करते नहीं है कुछ, डिग्रियों के अनुसार मैं भी काम चाहता हूं, दो रोटी मिले प्रेम से इतना कमा लूं,दिन रात चाहता हूं।

Bhojpuri song:bhart Ke Hal,का बताई भारत के हाल

Bhojpuri  song: bhart  Ke Hal,का बताई भारत के हाल का  बताई भारत के हाल ए भाई होत बाटे  सगरों बवाल ए भाई, स़ंसद के यार कुछ अजब ही हाल बा ओट खातिर रोज-रोज  मचत बवाल बा। इ बाटे संसद के हाल ए भाई, होत बाटे सगरों बवाल ए भाई। पुलिस ,टीटीई   के त अजब ही हाल बा, रूपया पर बिकत ए भाई इमान बा इ बाटे भारत के हाल ए भाई  होत बाटे सगरो बवाल ए भाई।                            ം     विनोद कुमार    

Hindi Kavita Love:तुम बिजली बन के गिरती हो

 Hindi Kavita Love:तुम बिजली बन के गिरती हो तुम बिजली बनके गिरती हो   मेरे इस दिल की धड़कन में  पर नहीं -नहीं  जब करती हो लगता मम्मी से डरती हो।   कह दो कि मेरी यादों में तुमको भी नींद नहीं आती, यह प्रेम की पीड़ा  कैसी है जो बिन बोले सब कह जाती। क्यों  मन को तुम भांति हो हर जगह नजर तुम आती हो। कब किस्मत की खुली लकीरों पर नाम तुम्हारा होगा, इतनी खुशियां यह सोचकर है  तब साथ तुम्हारा होगा।

Roti Ki Chahat:रोटी की चाहत मे दर -दर भटकता

Roti Ki Chahat:रोटी की चाहत मे दर -दर भटकता रोटी की चाहत में दर -दर भटकता,  करता क्या  जब पेट नहीं भरता। मानव की किस्मत   किस्सा निराला, किसी का कमाकर  पेट नहीं भरता, कोई  बिन कमाए ही सेठ कहलाता। यहां  दर्द गम को छिपाकर के  कितने, रोटी की चाहत में दर-दर भटकते। कोई रेहड़ियों में जवानी खपाता, करके मजदूरी   हड्डियो को गलाता। पेट की खातिर मानव है लड़ता रोटी की चाहत   कहां खत्म होता।  

Chunav: चुनाव के रंग

Chunav: चुनाव के रंग हिंदू -मुस्लिम करते-करते चुनाव का रंग चढ़ गया है। लोकतंत्र में सत्ता पाने का शुरूर कैसा चढ़ गया है। मेरा नेता सबसे अच्छा, तेरा नेता  पागल है, मेरा वाला जीत  रहा है, तेरा नेता  हार रहा है। लोकतंत्र में जनता भी, बेबस लाचार हो बैठी हैं। भाषण सुन -सुन कर नेता की  थक हार कर बैठी है।

Kavita: दूसरों की देखा देखी दूसरों की देखा

Kavita: दूसरों की देखा देखी दूसरों की देखा देखी करते-करते, कर्ज में क्यों डूबता हो, यह दुनिया है  यहां कौन किसी का होता है  ? तुम कर्ज को लेकर शादी में  पूड़ी पकवान खिलाकर,  जो निंदा करने वाले हैं  जो कमी गिनाने वाले हैं?  क्या उनको  चुप कर पाओगे? क्यों पड़े समाज के चक्कर मे  अपने अंदर  को झांको   तुम अपनी शक्ति के अंदर ही,   हर कार्य करो विस्तार करो ना   नकल करो गैरो का  , वरना एक दिन तुम रोओगे  भरते -भरते ही कर्ज   तुम  ईस धरा रिस्ता   तोड़ोगे।

Rajniti Par Kavita:राजनीति का रंग महल

 राजनीति के रंग महल में सत्ता के आ जाने पर, चादर तान के सोएंगे हम  राजतिलक हो जाने हर।                बहुत हो चुका धमा चौकड़ी                   अब तो चैन से रहने दो, खाली जेब हुआ वर्षों से  बेच फैक्कटरी भरनें दो। इधर -उधर कीजिए बात ना करना सत्ता में है अब क्या डरना, ढेर बोलेगे जेल करेगें, मान -हानि का केस करेंगें।  चालाकी जाओगें भूल  राज करेंगे पैसा वसूल।         विनोद कुमार